NCERT Solutions for Class 4 Hindi Chapter 12 सुनीता की पहिया कुर्सी

NCERT Solutions for Class 4 Hindi Chapter 12 सुनीता की पहिया कुर्सी

सुनीता को सबलोग गौर से क्यों देख रहे थे?
उत्तर:
सुनीता को सबलोग गौर से इसलिए देख रहे थे क्योंकि वह पहिया-कुर्सी पर बैठकर अकेले सड़क पर जा रही थी।

सुनीता को दुकानदार का व्यवहार क्यों बुरा लगा?
उत्तर:
दुकानदार ने सुनीता को चीनी की थैली पकड़ने के लायक नहीं समझा। उसे लगा कि वह शारीरिक रूप से कोई काम करने में अक्षम है। इसलिए उसने चीनी की थैली उसकी गोद में डाल दी। उसकी ऐसा व्यवहार सुनीता को बुरा लगा क्योंकि दुकानदार की सोच के विपरीत वह अपना सामान स्वयं ले सकती थी।

मज़ेदार
सुनीता को सड़क की जिंदगी देखने में मज़ा आता है।
(क) तुम्हारे विचार से सुनीता को सड़क देखना अच्छा क्यों लगता होगा?
उत्तर:
सुनीता को सड़क देखना अच्छा इसलिए लगता होगा क्योंकि वह अपने पैरों से चलने-फिरने में असमर्थ थी। इस वजह से उसे बाहर निकलने का मौका बहुत कम मिलता था। और जब कभी उसे ऐसा मौका मिल गया वह सड़क के चहल-पहल को देखकर खुश हो जाती।

(ख) अपने घर के आसपास की सड़क को ध्यान से देखो और बताओ

  • तुम्हें क्या-क्या चीजें नज़र आती हैं?
  • लोग क्या-क्या करते हुए नज़र आते हैं?

उत्तर:

  • सड़क पर चलते लोग, सब्जियों-फलों के ठेले, साइकिल पर सवार ताला-चाबी बनाने वाले, स्कूटर, बाइक आदि चीजें नजर आती हैं।
  • लोग सड़क पर चलते हुए, बातें करते हुए, स्कूटर रिक्शा बाइक आदि चलाते हुए नजर आते हैं।

मनाही
फ़रीदा की माँ ने कहा, “इस तरह के सवाल नहीं पूछने चाहिए।”
फ़रीदा पहिया कुर्सी के बारे में जानना चाहती थी पर उसकी माँ ने उसे रोक दिया।

  • माँ ने फ़रीदा को क्यों रोक दिया होगा?
  • क्या फ़रीदा को पहिया कुर्सी के बारे में नहीं पूछना चाहिए था? तुम्हें क्या लगता है?
  • क्या तुम्हें भी कोई काम करने या कोई बात कहने से मना किया जाता है? कौन मना करता है? कब मना करता है?

उत्तर:

  • माँ ने फ़रीदा को इसलिए रोक दिया होगा क्योंकि उनके विचार में किसी अपंग व्यक्ति से ऐसा सवाल करना उसके दिल को तकलीफ पहुँचाना है।
  • फ़रीदा बहुत छोटी थी। उसे क्या पता कि ऐसा सवाल उसे पूछना चाहिए या नहीं? हाँ अगर उसने पूछ ही लिया तो बहुत बड़ी गलती नहीं की। वह जिज्ञासावश उस पहिया कुर्सी के बारे में जानना चाहती थी।
  • स्वयं करो।

मैं भी कुछ कर सकती हूँ
(क) यदि सुनीता तुम्हारी पाठशाला में आए तो उसे किन-किन कामों में परेशानी आएगी?
उत्तर:
कक्षा में प्रवेश करने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ने में और कक्षा से बाहर आने के लिए सीढ़ियों से उतरने में, अपनी कक्षा के बच्चों के साथ खेलने में परेशानी आएगी।

(ख) उसे यह परेशानी न हो इसके लिए अपनी पाठशाला में क्या तुम कुछ बदलाव सुझा सकती हो?
उत्तर:
पाठशाला में रैम्प होने चाहिए। एक सहायक की नियुक्ति होनी चाहिए जिसका काम होगा सुनीता जैसे बच्चों की मदद करना।

प्यारी सुनीता
सुनीता के बारे में पढ़कर तुम्हारे मन में कई सवाल और बातें आ रही होंगी। वे बातें सुनीता को चिट्ठी लिखकर बताओ।
उत्तर:
ए-10, गुरु अंगद नगर, लक्ष्मी नगर
नई दिल्ली
दिनांक-19 मई 2012
प्रिय सुनीता,
तुम्हारी हिम्मत और धैर्य प्रशंसा के योग्य है। यह बहुत अच्छी बात है कि तुम स्वयं को अन्य बच्चों से अलग नहीं महसूस करती और वे सारे काम करने को तैयार रहती जो वे करते हैं। तुम वाकई बहुत पक्के इरादों वाली लड़की हो। पहिया-कुर्सी के सहारे कहीं भी चली जाती हो। उन लोगों का परवाह नहीं करती जो तुम्हें एकटक निहारते। हैं। मैं तुम्हारी शुभचिंतक हूँ। पत्र का जवाब जरूर देना।
तुम्हारी प्रिय सहेली
रचना

कहानी से आगे
सुनीता ने कहा, “मैं पैरों से चल ही नहीं सकती।”
(क) सुनीता अपने पैरों से चल-फिर नहीं सकती। तुमने पिछले साल पर्यावरण अध्ययन की किताब आस-पास में रवि भैया के बारे में पढ़ा होगा। रवि भैया देख नहीं सकते फिर भी वे किताबें पढ़ लेते हैं।
(i) वे किस तरह की किताबें पढ़ सकते हैं?
उत्तर:
वे ब्रेल लिपि में लिखी किताबें पढ़ सकते हैं।

(ii) उस तरह की किताबों के बारे में सबसे पहले किसने सोचा?
उत्तर:
उस तरह की किताबों के बारे में सबसे पहले लुई ब्रेल ने सोचा।

(ख) आस-पास में कुछ ऐसे लोगों के बारे में भी बात की गई है जो सुन-बोल नहीं सकते हैं।
(i) क्या तुम ऐसे किसी बच्चे को जानते हो जो सुन-बोल नहीं सकता?
उत्तर:
हाँ, मेरे पड़ोस में एक लड़का है। उसका नाम रवि है। वह सुन-बोल नहीं सकता।

(ii) तुम उसे किस तरह से अपनी बात समझाते हो?
उत्तर:
मैं उसे हाथों और चेहरे के इशारों से अपनी बात समझाता हूँ।

मेरा आविष्कार
सुनीता जैसे कई बच्चे हैं। इनमें से कुछ देख नहीं सकते तो कुछ बोल या सुन नहीं सकते। कुछ बच्चों के हाथों में परेशानी है, तो कुछ चल नहीं सकते।
तुम ऐसे ही किसी एक बच्चे के बारे में सोचो। यदि तुम्हें कोई शारीरिक परेशानी है, तो अपनी चुनौतियों के बारे में भी सोचो। उस चुनौती का सामना करने के लिए तुम क्या आविष्कार करना चाहोगे? उसके बारे में सोचकर बताओ कि

  • तुम वह कैसे बनाओगे?
  • उसे बनाने के लिए किन चीज़ों की ज़रूरत होगी?
  • वह चीज़ क्या-क्या काम कर सकेगी?
  • उस चीज़ का चित्र भी बनाओ।

उत्तर:
मैं एक ऐसी दवा का आविष्कार करूँगा जिसे खाते ही गूंगे बोलने लगेंगे, बहरे सुनने लगेंगे, अंधे देखने लगेंगे, लंगड़े चलने लगेंगे।

सुनीता की पहिया कुर्सी पाठ का सारांश

सुनीता जब सुबह उठी तो उसे याद आया कि आज बाजार जाना है। वह खुश हो गई। सुनीता आज पहली बार अकेले बाजार जाने वाली थी। उसने अपनी टांगों को हाथों से पकड़कर पलंग से नीचे लटकाया और चलने-फिरने वाली पहिया कुर्सी की मदद ली। वह अपने काम फुर्ती से निपटा ली और नाश्ता कर माँ से झोला और रुपए लेकर अपनी पहिया कुर्सी पर बैठ बाजार की ओर चल दी। आज छुट्टी का दिन है। हर जगह बच्चे खेलते हुए दिखाई दे रहे हैं। वह उदास हो गई। वह भी उन बच्चों के साथ खेलना चाहती थी।

रास्ते में कई लोग सुनीता को देखकर मुस्कुराए, जबकि वह उनको जानती तक नहीं थी। सुनीता हैरान थी यह सोचकर कि लोग उसको इस तरह क्यों देख रहे हैं। एक छोटी लड़की ने आखिर सुनीता से पूछ ही लिया-तुम्हारे पास यह अजीब सी चीज क्या है? सुनीता अभी जवाब दे ही रही थी कि उस लड़की की माँ ने गुस्से में आकर लड़की को सुनीता से दूर हटा दिया। माँ ने उसे समझाया–तुम्हें इस तरह का सवाल नहीं पूछना चाहिए। सुनीता दुखी हो गई। उसने लड़की की माँ से कहा- मैं दुसरे बच्चों से अलग नहीं हैं।

सुनीता बाजार पहुँच गई। दुकान में घुसने के लिए उसे सीढ़ियों पर चढ़ना था। यह काम बहुत मुश्किल था। लेकिन अमित नाम के एक लड़के की मदद से वह सीढ़ियाँ चढ़ गई। उसने अमित को धन्यवाद दिया और कहा-अब मैं दुकान तक खुद पहुँच सकती हूँ। दूकान में पहुंचकर सुनीता ने एक किलो चीनी माँगी। दुकानदार जल्दी में था। उसने चीनी की थैली सुनीता की गोद में डाल दी। सुनीता गुस्सा हो गई। दूसरों की तरह वह भी अपने आप सामान ले सकती थी। उसे दुकानदार का व्यवहार अच्छा नहीं लगा। चीनी लेकर वह अमित के साथ बाहर निकल आयी। वह दुखी थी। उसने अमित से कहा-लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि मैं कोई अजीबोगरीब लड़की हूँ। इसपर अमित ने कहा-शायद तुम्हारी पहिया कुर्सी के कारण ही वे ऐसा व्यवहार करते हैं। उसने सुनीता से पूछा-तुम इसपर क्यों बैठती हो? सुनीता ने जवाब दिया-मैं पैरों से नहीं चल सकती। इस पहिया कुर्सी के पहियों को घुमाकर ही मैं चल-फिर पाती हूँ। फिर भी मैं दूसरे बच्चों से अलग नहीं हूँ। अमित ने उसकी इस बात को स्वीकार नहीं किया। उसने कहा-मैं भी वे सारे काम कर सकता हूँ जो दूसरे बच्चे कर सकते हैं। पर मैं भी दूसरे बच्चों से अलग हूँ। इसी तरह तुम भी अलग हो। सुनीती मानने को तैयार नहीं थी। अमित ने उसे फिर समझाया-हम दोनों बाकी लोगों से कुछ अलग हैं। तुम पहिया कुर्सी पर बैठकर चलती हो। मेरा कद बहुत छोटा है। सुनीता कुछ सोचने लगी। फिर वह अमित के साथ तेजी से सड़क पर आगे बढ़ गई। लोग उन दोनों को घूरते रहे लेकिन सुनीता को उनकी कोई परवाह नहीं थी।

शब्दार्थ : सहारा-सहायता, मदद। फुर्ती-तेजी। रोज़ाना-रोज, प्रतिदिन। टुकुर-टुकुर-एकटक। अजीबोगरीबअनोखा, विचित्र। परवाह-ध्यान, ख्याल