NCERT Solutions for Class 4 Hindi Chapter 14 मुफ्त ही मुफ्त (गुजराती लोककथा)
(क) हर बार भीखूभाई कम दाम देना चाहते थे। क्यों?
उत्तर:
हर बार भीखूभाई कम दाम देना चाहते थे क्योंकि वे बहुत ज्यादा कंजूस थे।
(ख) हर जगह नारियल के दाम में फर्क क्यों था?
उत्तर:
जहाँ नारियल की खेती होती है वहाँ अर्थात् नारियल के बगीचे में नारियल सबसे सस्ता मिलेगा। बाजार तक जाने में उसकी कीमत बढ़ती जाती है और बाजार में पहुँचते ही उसकी कीमत सबसे अधिक हो जाती है।
(ग) क्या भीखूभाई को नारियल सच में मुफ्त में मिला? क्यों?
उत्तर:
नहीं, भीखूभाई को नारियल मुफ्त में नहीं मिला। इसे पाने के लिए उन्हें बहुत दूर पैदल जाना पड़ा, धूप में पसीना बहाना पड़ा और अंत में तो वह नारियल के पेड़ से गिर पड़े और उनके सिर पर एक बड़ा नारियल आ फूटी।
(घ) वे खेत में बूढ़े बरगद के नीचे बैठ गए। तुम्हारे विचार से कहानी में बरगद को बूढ़ा क्यों कहा गया होगा?
उत्तर:
बरगद का पेड़ बहुत सालों से अस्तित्व में होगा। इसीलिए उसे बूढ़ा कहा गया है।
भीखूभाई ऐसे थे
कहानी को पढ़कर तुम भीखूभाई के बारे में काफी कुछ जान गए होगे। भीखूभाई के बारे में कुछ बातें बताओ।
उत्तर:
(क) उन्हें खाने-पीने का शौक था।
(ख) वे बड़े कंजूस थे।
(ग) उन्हें नारियल बहुत पसंद था।
(घ) वे कम-से-कम पैसों में नारियल पाना चाहते थे।
(ङ) वे बातें बनाने में बड़े होशियार थे।
क्या बढ़ा, क्या घटा
कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, कुछ चीजें बढ़ती हैं और कुछ घटती हैं। बताओ इनका क्या हुआ, ये घटे या बढ़े?
उत्तर:
कहो कहानी
यदि इस कहानी में भीखूभाई को नारियल नहीं बल्कि आम खाने की इच्छा होती तो कहानी आगे कैसे बढ़ती? बताओ।
उत्तर:
स्वयं करो।
बात की बात
कहानी में नारियल वाले और भीखूभाई की बातचीत फिर से पढ़ो। अब इसे अपने घर की बोली में लिखो।
उत्तर:
- अरे भाई नारियल वाले, कितने का है एक नारियल ?
- बस दो रुपए में अंकल जी।।
- बहुत ज्यादा बता रहे हो। एक रुपए में देना है तो दे दो।
- अरे नहीं अंकल जी। एक रुपए में लेना है तो मंडी चले जाओ।
- कहाँ है मंडी?
- यहाँ से थोड़ी दूर।
- ठीक है वहीं जाता हूँ।
शब्दों की बात
नाना-नानी – पतीली-पतीला
ऊपर दिए गए उदाहरणों की मदद से नीचे दी गई जगह में सही शब्द लिखो।
उत्तर:
काका | काकी | दर्जी | दर्जिन |
मालिन | माली | टोकरी | टोकरा |
मटका | मटकी | गद्दा | गद्दी |
मंडी
मंडी में कोलाहल फैला हुआ था। व्यापारियों की ऊँची-ऊँची आवाजें पूँज रही थीं।”
(क) मंडी में क्या-क्या बिक रहा होगा?
(ख) मंडी में तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं।
जैसे-ताज़ा टमाटर! बीस रुपया! बीस रुपया! बीस रुपया! मंडी में और कैसी आवाजें सुनाई देती हैं?
उत्तर:
(क) मंडी में आलू, टमाटर, मटर, शिमला मिर्च, बंदगोभी, गाजर, कांदा, प्याज आदि सब्जियाँ बिक रही होंगी।
(ख)
- दस रुपये में डेढ़ किलो आलू भरो।
- भेलपूड़ी खाओ।
- रंग-बिरंगे गुब्बारे ले लो।
(ग) क्या तुम अपने आसपास की ऐसी जगह सोच सकते हो, जहाँ बहुत शोर होता है। उस जगह के बारे में लिखो।।
उत्तर:
मेरे घर के नजदीक भवन-निर्माण कार्य चल रहा है। वहाँ से तरह-तरह की कर्कश आवाजें आती रहती हैं-कभी ड्रिलिंग की, कभी पत्थर घिसाई की, कभी ट्रैक्टर की, कभी भारी चीजें उठाते हुए श्रमिकों की जोर की आवाज।।
गुजरात की झलक
(क) “मुफ्त ही मुफ्त’ गुजरात की लोककथा है। इस लोककथा के चित्रों में ऐसी कौन सी बातें हैं जिनसे तुम यह अंदाज़ा लगा सकते हो?
उत्तर:
इस लोककथा के चित्रों में भीखूभाई का पहनावा दिखाया गया है। मंडी में बिक रही चीजें जैसे बटाटा, आलू, कांदा आदि से पता चलता है कि यह कथा गुजराती है। पुरुष के नाम के साथ ‘भाई’ और महिला के नाम के साथ ‘बेन’ लगा हुआ है। इससे भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह गुजरात की लोककथा है।
(ख) गुजरात में किसी का आदर करने के लिए नाम के साथ भाई, बेन (बहन) जैसे शब्दों का प्रयोग होता है। तेलुगु में नाम के आगे ‘गारू’ और हिंदी में ‘जी’ जोड़ा जाता है। तुम्हारी कक्षा में भी अलग-अलग भाषा बोलने वाले बच्चे होंगे! पता करो और लिखो कि वे अपनी भाषा में किसी को आदर देने के लिए किन-किन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।
उत्तर:
स्वयं करो।
मुफ्त ही मुफ्त (गुजराती लोककथा ) कविता का सारांश
भीखू भाई जरा कंजूस थे। एक दिन उनका मन नारियल खाने का हुआ। लेकिन इसके लिए न तो वे बाजार जाना चाहते थे न ही पैसे खर्च करना। वे सीधे खेत में जाकर बूढ़े बरगद के नीचे बैठ गए और सोचने लगे-क्या करूं? फिर उठे, घर आए, जूते पहने और छड़ी उठाकर बाजार निकल पड़े. केवल यह जानने के लिए नारियल आजकल कितने में बिक रहे हैं। बाजार में जब नारियल वाले ने पूछने पर बताया कि एक नारियल दो रुपये में है तो भीखू भाई की आँखें फैल गईं। उन्होंने कहा-बहुत ज्यादा है। एक रुपये में दे दो। नारियल वाला तैयार नहीं हुआ। भीखू भाई ने उससे पूछा-अच्छा तो बताओ, एक रुपये में कहाँ मिलेगा? नारियल वाले ने जब बताया कि मंडी में तब भीखू भाई फौरन उसी तरफ चल पड़े।
मंडी में व्यापारियों की ऊँची-ऊँची आवाजें गूंज रही थीं। भीखूभाई ने इधर-उधर देखा और बहुत जल्दी उन्हें नारियलवाला दिख गया। उन्होंने उससे एक नारियल का दाम पूछा। नारियल वाले ने कहा-सिर्फ एक रुपया में, जो चाहो ले जाओ। भीखू भाई ने उसकी तरफ पचास पैसे बढ़ाते हुए कहा-पचास पैसे काफी हैं। मैं इस नारियल को लेता हूँ और तुमं, यह लो, पकड़ो पचास पैसा। नारियल वाले ने झट उनके हाथ से नारियल छीन लिया और कहने लगा-हो सकता है। बंदरगाह पर तुम्हें पचास पैसे में मिल जाए।
भीखू भाई सागर के किनारे एक नाव वाले के पास दो चार नारियल पड़े देख उससे पूछ बैठे-एक नारियल कितने में दोगे? नाव वाले ने जवाब दिया–पचास पैसे में। भीखू भाई हैरान रह गये। उन्होंने कहा-इतनी दूर से पैदल आया हूँ। पचास पैसे बहुत ज्यादा हैं। मैं तुम्हें पच्चीस पैसे दूंगा। नाव वाला तैयार नहीं हुआ। हाँ, उसने भीखू भाई को नारियल के बगीचे में जाने की सलाह दी।
भीखू भाई जब नारियल के बगीचे में पहुँच गए। वहाँ के माली को देखकर उससे पूछा-यह नारियल कितने पैसे में बेचोगे? माली ने जवाब दिया-बस पच्चीस पैसे का एक। भीखू भाई को पच्चीस पैसे भी ज्यादा लगे। उन्होंने माली से कहा-मैं बहुत थक गया हूँ। मेरी बात मानो, एक नारियल मुफ्त में ही दे दो। इसपर माली ने कहा-अगर मुफ्त में नारियल चाहिये तो पेड़ पर चढ़ जाओ और जितने चाहो तोड़ लो । भीखू भाई बेहद खुश हुए। उन्होंने जल्दी-जल्दी पेड़ पर चढ़ना शुरू कर दिया। बहुत जल्दी ऊपर चढ़ गए। फिर वे टहनी और तने के बीच आराम से बैठ गए और दोनों हाथों को आगे बढ़ाने लगे सबसे बड़े नारियल को तोड़ने के लिए। अचानक उनके पैर फिसल गए। उनहोंने एकदम से नारियल को पकड़ लिया। उनके दोनों पैर हवा में झूलते रह गए। उन्होंने माली से मदद की विनती की। माली मदद देने से मना कर दिया। तभी ऊँट पर सवार एक आदमी वहाँ से गुजरा। भीखूभाई ने उससे मदद माँगी। वह तैयार हो गया। ऊँट की। पीठ पर खड़े होकर उसने भीखू भाई के पैरों को पकड़ लिया। ठीक उसी समय हरे-भरे पत्ते खाने की लालच में ऊँट ने गर्दन झुकाई और अपनी जगह से हट गया। नतीजा हुआ कि वह आदमी ऊँट की पीठ से फिसल गया। अपनी जान बचाने के लिए उसने भीखूभाई के पैरों को कसकर पकड़ लिया। इतने में एक घुड़सवार वहाँ आया। पेड़ से लटके दोनों जनों ने उससे मदद माँगी। घुड़सवार ने सोचा-मैं घोड़े की पीठ पर चढ़कर इनकी मदद कर देता हूँ। फिर वह घोड़े पर उठ खड़ा हुआ। लेकिन घोड़े ने भी वही किया जो ऊँट ने किया था। हरी घास के चक्कर में घोड़ा जरी आगे बढ़ा और छोड़ चला अपने मालिक को ऊँटवाले के पैरों से लटकते हुए। नारियल के पेड़ से अब तीन जने झूल रहे थे। घुड़सवार ने भीखूभाई से कहा-काका! काका! कसके पकड़े रहना। मैं आपको सौ रुपए दूंगा। इसके बाद ऊँटवाले ने कहा-मैं आपको दौ सौ । रुपए दूंगा, लेकिन नारियल को छोड़ना नहीं। भूखूभाई सौ और दो सौ के चक्कर में कुछ ज्यादा ही खुश हो गए। खुशी से उन्होंने अपनी दोनों बाहों को फैला दिया। इतने में नारियल हाथ से छूट गया। परिणामस्वरूप घुड़सवार, ऊँटवाला और भीखूभाई तीनों जमीन पर धड़ाम से गिर पड़े। और दूसरे ही क्षण एक बहुत बड़ा नारियल भीखूभाई के सिर पर आ फूटा।
शब्दार्थ : उचकाकर-उठाकर। मुफ्त-बिना पैसे का। कोलाहल-शोरगुल । हक्के-बक्के रह गए-हैरान रह गए। हर्ज-नुकसान। फुर्ती-तेजी। किस्मत-भाग्य। मेहरबानी-कृपा।